A-ESDP on Sugarcane Propagation through Tissue Culture Techniques           A-ESDP on Development of agri-preneurship through establishing healthy settling nurseries of sugarcane setts for the supply of quality planting materials to farmers           ICAR-IISR, Lucknow organized "National Conference on Plant Health for Food Security: Threats & Promises"           Link to AICRP Reporter           Email addresses of IISR, Lucknow officials          

 

आई आई एस आर न्यूज़


IISR, Lucknow organized workshop on “Promotion of climate resilient crops/ varieties/ seeds” under Mission LIFE


Celebration of World Intellectual Property Day, 2024


Secretary DARE & DG, ICAR laid the foundation stone of Ikshu Hostel and interacted with students of IARI Mega University Lucknow hub at ICAR-IISR, Lucknow


One-day Farmer Training Programme on‘Identification and Management of Major Sugarcane Borers’under SC-SP Plan at ICAR-IISR, Biological Control Centre, Pravaranagar (MS)


ICAR-IISR, Lucknow celebrated International Women’s Day 2024


Institute organised National Seminar on "Mechanization of Sugarcane Cultivation"


ICAR-IISR KVK Lakhimpur Khiri-II Inaugurated


ICAR-IISR, Lucknow displayed Institute’s technologies and development at exhibition stall in the Regional Agriculture Fair for Eastern Region 2024 at KVK, Diyankal, Torpa Block, Khunti (Jharkhand) during February 03-05, 2024


बौद्धिक सम्पदा अधिकारों में नवाचार, पहुंच तथा लाभ बँटवारे तथा प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण विषय पर एक दिवसीय संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन दिनांक 19 फरवरी 2024


भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने मनाया अपना 73वाँ स्थापना दिवस


ICAR-IISR, Lucknow organized "National Conference on Plant Health for Food Security: Threats & Promises"


Pre-conference Press release for Organization of a National Conference on Plant Health for Food Security at ICAR-IISR, Lucknow


Director, ICAR-IISR, Lucknow visited ICAR-IISR, Biological Control Centre, Pravaranagar (Maharashtra)


One-day Farmer Training Programme on‘Integrated Management of White grubsInfesting Sugarcane’ under SC-SP Plan at ICAR-IISR, Biological Control Centre, Pravaranagar (MS)


ICAR-IISR, displayed institute’s technologies and development stall in 3rd International Conference at VSI, Pune from 12th -14th January 2024


उपलब्धियाँ (फसल उत्पादन विभाग)

गन्ना उत्पादन के लिए एक नयी केन-नोड तकनीक का विकास किया गया है। इस तकनीक में गन्ना उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने वाले कुल बीज में 60 प्रतिशत बीज की बचत होती है। इससे उपोष्ण क्षेत्रों में समय से बुवाई तथा गन्ने की उत्पादक्ता में वृद्धि की जा सकती है ।
एक नई तकनीक, गहराई में भू-परिष्करण के साथ उप-सतह पर 1.5 मी की दूरी पर क्रिस क्रॉस जुताई करने से मृदा भौतिक गुणों जैसे मृदा घनत्व, रिसाव दर और मृदा कण स्थिरता को बढ़ाने के साथ-साथ गन्नों की मुख्य फसल और पेडी की उत्पादकता में वृद्धि करती है।
सूक्ष्म सिंचाई तकनीकी जैसे उप सतही टपक विधि का विकास किया गया है । इस तकनीक से अन्य परंपरागत सिंचाई विधियों की तुलना में अधिक पैदावार के साथ-साथ सिंचाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले कुल पानी में 60-70 प्रतिशत की बचत की जा सकती है।
एक तकनीकी प्रदर्शनी पार्क को विकसित किया गया है जो कि कृषकों को संभाग द्वारा विकसित की गई विभिन्न तकनीकियों को प्रदर्शित करता है। तकनीकी स्थानान्तरण के लिए, विभिन्न तरह के प्रशिक्षण सत्र जैसे किसानों के लिए, चीनी उद्योग में लगे व्यक्तियों के लिए, और राज्य सरकार के अधिकारियों आदि के लिए समय-समय पर आयोजित किए जाते हैं।
गन्ना-पेड़ी-गेहूँ प्रणाली मृदा कार्बन वृद्धि के दृष्टिकोण से सबसे अच्छी तकनीक सिद्ध हुई है। इस पद्धति में फसल अवशेष डालने से धान –गेहूँ फसल चक्र की तुलना में मृदा कार्बन की मात्रा(0.45%) अधिक पायी गयी। मृदा कार्बन की मात्रा गन्ना-पेड़ी-गेहूँ प्रणाली में फसल अवशेष डालने से 40.6% जबकि धान-गेहूँ प्रणाली में मात्र 20.8% की वृद्धि हुई ।
हाल ही में किए गए शोध के अनुसार गन्ना बुवाई के समय यदि प्रारम्भिक मृदा कार्बन 0.65 प्रतिशत से अधिक है तो यह पोषक तत्व प्रबन्धन मे काफी मददगार साबित होता है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में यदि मृदा कार्बन अधिक है तो यह गन्ने की तीसरी पेडी तक की उत्पादन क्षमता को विभिन्न पोषक तत्व प्रबन्धों के उपयोग से बढाने में मदद करता है।
प्रयोगों के माध्यम से यह पूर्णतया साबित हो चुका है मृदा कार्बन की मात्रा बढ़ने के साथ-साथ पेड़ी गन्ने के उत्पादन में वृद्धि सम्भव है परिणामतः गन्ने का अधिकतम उत्पादन (87.54/हे.) 0.76 प्रतिशत मृदा कार्बन स्तर पर प्राप्त हुआ।
गन्ना की नई तकनीक (केन नोड विधि) से बुवाई करने से लगभग 17 क्विंटल/हेक्टेयर बीज की आवश्यक्ता पड़ती है। इस प्रकार यह गन्ने की कुल उत्पादन लागत को कम करता है। यह तकनीक किसानों के बीच में बहुत प्रसिद्ध है, क्योंकि यह विधि नई विकसित की गई प्रजातियों के बीज उत्पादन में जल्दी बढ़ाने में मदद करती है।
उत्पादन लक्ष्य अनुरूप पोषक तत्वों के प्रयोग हेतु एक गणितीय समीकरण, गन्ना प्रजाति को-0238 के पौध एवं पेडी फसल दोनों के लिए विकसित किया जा चुका है।
एक वृहद् अध्ययन के माध्यम से यह पाया गया कि गन्ना आधारित एकीकृत कृषि पद्धति में गन्ना, केला और पपीता आधारित सहफसली और मधुमक्खी पालन और मशरूम उत्पादन तकनीक को सम्मिलित करना लाभप्रद साबित हुआ है।
संरक्षण खेती के तहत शून्य भूपरिष्करण फसल अवशेष को डालने से गेहूँ उत्पादन में लगभग 18 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ। जबकि गेहूँ की पारंपरिक खेती की तुलना में पारंपरिक खेती में अवशेष डालने से लगभग 7.7 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ है।
विभिन्न खरपतवार प्रबन्धन पद्धतियों के प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला गया कि सभी खरपतवारों को नियंत्रित करने वाले शाकनाशियों में एमेट्रिन 150 ग्राम/हे., 2, 4-डी/2000 ग्राम/हे., मेट्रीव्युजिन 1250 ग्राम/हे. का बुवाई के 30 दिन बाद तक प्रयोग करके बन्ध्य खरपतवार आइपोमिया को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबन्धन अध्ययन से यह सिद्ध हो चुका है कि सिंचाई की टपक विधि को अपनाने से गन्ने की पैदावार परंपरागत सिंचाई विधि जैसे नाली सिंचाई से लगभग 37 प्रतिशत अधिक बढ़ गयी।
द्विनाली ट्रेंच विधि में फसल अवशेष का उपयोग करने से गन्ना उत्पादन को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है जबकि समतल बुवाई विधि की तुलना में अधिक पैदावार प्राप्त होती है। इस प्रकार ट्रेश मल्चिंग से सिंचाई के बचत के साथ पानी उपयोग की दक्षता बढ़ती है।
हाल के अध्ययनों में यह भी साबित हुआ है कि प्राकृतिक संसाधनों का सही प्रयोग करने से आलू और गन्ने की अन्तःफसली पद्धति, आलू गन्ना फसल चक्र की तुलना में न केवल अधिक लाभप्रद बल्कि अधिक टिकाऊ भी साबित हुई है।
गन्ना पोषक तत्व प्रबंधन में चौथे पोषक तत्व सल्फर को नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश के साथ सम्मिलित कर लेने से गन्ने का न केवल अधिक उत्पादन प्राप्त हुआ बल्कि मूल्य:लागत अनुपात भी अधिक पाया गया।
पोषक तत्वों में बचत करने हेतु पोषक तत्व प्रबन्धन में जैव जीवाणुओं के उपयोग को सम्मिलित किया गया। इनमें मुख्य रूप से फास्फोरस घुलनशील जीवाणु पीएसबी 28 और पीएसबी 29 (इक्षु पीएसबी) का उपयोग किया गया। इन जीवाणुओं के प्रयोग से लगभग 25 प्रतिशत फास्फोरस उर्वरक की बचत होती है।
नत्रजन स्थिरीकरण जीवाणु का व्यापारिक उत्पादन एवं वितरण हेतु भा.कृ.अनु.प. भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ एवं ग्रेसिम इन्डस्ट्रीज लिमिटेड के मध्य एक समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हुआ है। एक वृहत अध्ययन, पहचान एवं आणविक चरिण चित्रण के आधार पर यह पता चला है कि नत्रजन स्थिरीकरण जीवाणु ग्लुकानएसीटोबैक्टर सेकेराई एवं फास्फेट विघटन वाले जीवाणु स्पुडोमोनास (पीएसबी 28 और पीएसवी 29) के प्रयोग से क्रमशः 25 प्रतिशत नत्रजन की बचत एवं फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाती है। इस तकनीक को ग्रेसिम इण्डस्ट्रीज प्रा0 लिमिटेड के माध्यम से बड़े पैमाने पर तैयार किया करके किसानों के मध्य पहुँचाया जा रहा है।
नैनो विज्ञान एवं तकनीक के अन्तर्गत भा.कृ.अनु.प.-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ एवं नैनो विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान, चंडीगढ़ के मध्य नैनो तकनीकी के उपयोग को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुआ । पोषक तत्व दक्षता एवं उनके नुकसान को कम करने तथा उत्पादन लागत को कम करने हेतु भा.कृ.अनु.प.-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक संस्थान, नैनो विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान, मोहाली के साथ नैनो उर्वरक पर कार्य करने के लिए सम्बंध स्थापित किया है ।