CoLk 94184, एक जल्दी परिपक्व होने वाली गन्ना किस्म |
संस्थान ने एक उच्च चीनी उपज गन्ना किस्म, CoLk 94184 (बीरेंद्र) विकसित की, जो देश के उत्तर मध्य क्षेत्र (पूर्वी यू.पी. और बिहार) में वाणिज्यिक खेती के लिए जारी किया गया है। CoLk 94184 दो वांछनीय विशेषताओं का एक दुर्लभ संयोजन है, अर्थात्, जल्दी परिपक्वता और अच्छी पेड़ी उत्पादन क्षमता। इस किस्म से इस क्षेत्र में कम गन्ने और खराब गन्ने की किस्मों की समस्या को दूर करने में मदद मिलेगी। CoLk 94184 किस्म नमी तनाव और जलभराव दोनों का सामना कर सकती है, इसलिए, यह यू पी और बिहार में चीनी की वसूली और गन्ना उत्पादन को बढ़ावा देने में सक्षम है। औसतन किसान प्रति हेक्टेयर 76 टन गन्ने की कटाई कर सकते हैं। |
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अंतराल रोपाई तकनीक (एसटीपी) |
एक साथ किल्ले निकलने तथा गन्ना बीज के शीघ्र बहुगुणन हेतु संस्थान द्वारा स्पेस्ड ट्रांसप्लांटिंग तकनीक (एस.टी.पी.) विकसित की गई है। इस तकनीक से बीज बहुगुणन अनुपात 1:10 से 1:40 तक बढ़ाया जा सकता है। इस तकनीक के प्रयोग से नवीनतम विकसित प्रजातियों के तीव्र प्रसार में कई स्थानों पर सफलता मिली है। |
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तीन स्तरीय बीज कार्यक्रम |
यह कार्यक्रम गन्ना उत्पादकों को रोग मुक्त स्वस्थ बीज प्रदान करता है। यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया है। नम गर्म हवा उपकरण (एमएचएटी) की रूपरेखा इस संस्थान में ही विकसित की गई है और इसे अनेक चीनी मिलों में स्थापित भी किया गया है। इस विधि ने गन्ना उत्पादन में टिकाऊपन बनाए रखने की अपनी उपयोगिता को साबित कर दिया है। |
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गन्ने में अन्तः फसल के लिए प्रौद्योगिकी पैकेज |
गन्ना+आलू
- बीज दर: गन्ना-60 कुंतल/हेक्टेयर, आलू 25 कुंतल/ हैक्टेयर
- 1:2 पंक्ति अनुपात, गन्ने की बुवाई 90 सेमी की दूरी पर तथा बीच में आलू की दो पंक्तियाँ 30-30 से.मी. की दूरी पर
- खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरन्त बाद सिमाजीन का 1 किलो सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से छिड़काव, तत्पश्चात बुवाई के 30 दिनो बाद निकाई-गुड़ाई तथा बुवाई के 50 दिन बाद मिट्टी चढ़ाना
- गन्ने के लिए नाइट्रोजन : फास्फोरस : पोटाश का क्रमशा: 150:60:60 कि.ग्रा./ है. तथा आलू के लिए 120:80:100 कि.ग्रा./ है. का प्रयोग
- प्रणाली उत्पादकता : आलू – 272 कुं /हैक्टेयर तथा गन्ना – 90.6 टन/ हैक्टेयर
- लाभ- लागत अनुपात: 1.63
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गन्ना+राजमा
- बीज दर: गन्ना-60 कुं / हैक्टेयर, राजमा- 80 कि.ग्रा / हैक्टेयर
- 1:2, पंक्ति अनुपात, गन्ने की बुवाई 90 सेमी की दूरी पर तथा बीच में राजमा की दो पंक्तियाँ 30-30 सेमी की दूरी पर
- गन्ने के लिए नाइट्रोजन : फास्फोरस : पोटाश का क्रमश: 150:60:60 कि.ग्रा./ है. तथा राजमा के लिए 80:40:30 कि.ग्रा./है. का प्रयोग
- खरपतवार नियंत्रण हेतु पेंडीमीथेलिन का 2.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/ हेक्टेयर का बुवाई के तुरन्त बाद छिड़काव, तत्पश्चात राजमा की कटाई के बाद 2 – 3 निकाई - गुड़ाई
- प्रणाली उत्पादकता : गन्ना – 86.8 टन/ हैक्टेयर तथा राजमा – 17.5 कुं./ हैक्टेयर
- लाभ- लागत अनुपात : 1.69
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गन्ना+सरसों
- बीज दर: गन्ना-60 कुं./हैक्टेयर व सरसों 5 कि.ग्रा./हैक्टेयर
- 1:2 पंक्ति अनुपात, गन्ने कि बुवाई 90 से.मी. की दूरी पर तथा बीच में सरसों की दो पंक्तियाँ 30-30 से.मी. की दूरी पर
- गन्ने के फसल में नाइट्रोजन : फास्फोरस : पोटाश उर्वरकों का 150:60:60 कि.ग्रा./है. तथा सरसों में 30:20:0 कि.ग्रा./ है. की दर से प्रयोग
- खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरन्त बाद पेंडीमेथिलीन का 2.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हे कि दर से प्रयोग तथा सरसों कि कटाई के 30 व 60 दिनों पश्चात दो निकाई-गुड़ाई
- प्रणाली उत्पादकता : गन्ना – 75.2 टन/हैक्टेयर तथा सरसों – 14.4 कुं./ है.
- लाभ- लागत अनुपात: 1.40
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गन्ना+गेहूं
- बीज दर: गन्ना-60 कुं./ हैक्टेयर, गेहूँ - 75 कि.ग्रा./हैक्टेयर
- फर्ब पद्धति के अंतर्गत आई.आई.एस.आर. प्लांटर सीडर से 1:3 पंक्ति अनुपात में गन्ने कि बुवाई 90 से.मी. की दूरी पर तथा गेहूँ की तीन पंक्तियों की 20-20 से.मी. की दूरी पर बुवाई
- गन्ने की फसल में नाइट्रोजन : फास्फोरस : पोटाश उर्वरकों का 150:60:60 कि.ग्रा./हे. तथा गेहूँ में 90:45:45 कि.ग्रा./है. की दर से प्रयोग
- खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरन्त बाद पेंडीमेथिलीन का 2.0 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से प्रयोग तथा गेहूँ की कटाई के 30 व 60 दिनों पश्चात दो निकाई-गुड़ाई
- प्रणाली उत्पादकता: गन्ना – 74.5 टन/हैक्टेयर तथा गेहूँ- 39-4 कुं./हैक्टेयर
- लाभ-लागत अनुपात: 1.24
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गन्ना रोपण के संशोधित तरीकों के लिए प्रौद्योगिकी पैकेज |
गड्ढा विधि
- मुख्य तना प्रौद्योगिकी अथवा बगैर किल्ला प्रौद्योगिकी
- विशिष्टताएं: गड्ढे का व्यास : 75 सेमी. गड्ढे का गहराई: 30 सेमी. केन्द्र से केंद्र की दूरी : 105 सेमी. गड्ढों की संख्या : 9000/हैक्टेयर
- सूखा क्षेत्र, ऊबड़-खाबड़ खेत, हल्की मृदा, लवणीय-क्षारीय मृदा, बहुपेड़ी तथा उच्च उत्पादकता, गन्ने की ऊँची व मोटी प्रजातियों हेतु उपयुक्त।
- गन्ने की उत्पादकता : 125 टन/ हैक्टेयर
- लाभ-लागत अनुपात : 1.83
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नाली (ट्रेंच) विधि
- नाली का आकार :30 सेमी चौडी तथा गहरी केंद्र से केंद्र की दूरी : 120 सेमी (30 : 90 से.मी.)
- विशिष्टताएं : यांत्रिक कृषि हेतु उपयुक्त, कम मजदूरों की आवश्यकता तथा अधिक जल उपयोग क्षमता
- गन्ने की उत्पादकता : 110 टन/हेक्टेयर
- लाभ-लागत अनुपात : 2.15
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फर्ब विधि द्वारा बुवाई
- उपयुक्त फर्ब विन्यास (50-30-50 से.मी.)
- नवम्बर में उठी हुई क्यारियों पर 2-3 पंक्तियों में गेहूँ की बुवाई
- फरवरी-मार्च में सिंचाई नालियों में तथा गन्ने की हाथ द्वारा बुवाई
- गेहूँ की पूर्ण उत्पादकता के साथ गन्ने की 35 प्रतिशत अधिक उत्पादकता
- लाभ-लागत अनुपात: 1.24
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गन्ना पेंडी प्रबंधन हेतु प्रौद्योगिकी |
- पेड़ी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु आरम्भ में मेड़ों को तोड़कर ठूँठों की छँटाई करना।
- बावक फसल की पौध संख्या की तुलना में 15 प्रतिशत से अधिक रिक्त स्थान होने पर उन स्थानों को सेटस/पूर्व अंकुरित टुकड़े/पालिबैग में उगाए टुकड़ों से भरना ताकि 45 से.मी. से अधिक दूरी का कोई रिक्त स्थान न रह जाय।
- जुड़वाँ पंक्ति में बुवाई (120:30) करने से रिक्त स्थानों में कमी आती है, अगली पेड़ी फसल में पौध संख्या पर्याप्त रहती है तथा 90 से.मी. की दूरी पर बोई गई फसल की तुलना में उत्पादकता अधिक होती है।
- एकांतर पंक्तियों में मल्च की 10 से.मी. मोती परत बिछाने की विधि मृदा की नमी के संरक्षण, खरपतवारों के प्रकोप को कम करने व मृदा में जीवाश्म की मात्रा कायम रखने में उपयोगी सिद्ध हुई।
- कटाई के एक माह पूर्व खड़ी फसल में सिचाई के जल के साथ पोटैशियम (80 कि.ग्रा./हेक्टेयर) के प्रयोग से अंकुरण प्रस्फुटन, पेराई योग्य गन्नों की संख्या तथा अगली पेड़ी फसल कि उत्पादकता में सुधार होता है।
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सिंचाई की उभरी कूड विधि–गन्ना उत्पादन की सिंचाई जल बचत तकनीक |
गन्ने के अंकुरण के बाद (रोपण के 35-40 दिनों के बाद) 45 सेमी चौड़ा और 15 सेमी गहरी एकांतर पंक्तियों में कूड बनाए जाते हैं। इससे 36.5% सिंचाई के पानी की बचत होती है और 64% पानी के उपयोग की क्षमता में सुधार होता है। |
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खरपतवार प्रबंधन |
कर्षण तथा रसायनिक विधियों को समाहित करते हुए खरपतवार प्रबंधन कि एक प्रभावी समेकित विधि विकसित की गई है। इसमें प्रथम सिंचाई के बाद एक निकाई-गुड़ाई तथा द्वितीय सिंचाई के बाद एट्राजीन कि 2 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाता है। इस प्रबंधन से खरपतवारों की वृद्धि को नियंत्रित करने में अति प्रभावी सफलता मिली (खरपतवार नियंत्रण दक्षता 97-100 प्रतिशत), तथा गन्ने की उपज में वृद्धि तथा निकाई-गुड़ाई की तुलना में लागत में 50 प्रतिशत की बचत होती है। अंकुरण के पूर्व मेट्रिब्यूजिन की एक कि.ग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टेयर अथवा एमेट्रीन 2 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर अथवा एट्राजीन 2 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर तथा बुवाई के 60 दिनों बाद 2-4 डी की एक कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/हैक्टेयर के साथ बुवाई के 90 दिनों बाद एक निकाई-गुड़ाईं गन्ने में खरपतवार प्रबंधन हेतु प्रभावी एवं मितव्ययी तकनीक पाई गई है। |
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रोग प्रबंधन |
सामान्य |
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- गन्ने को 540 सेल्सियस तथा 95-99 प्रतिशत सापेक्षिक आद्रता पर ढाई घंटो के लिए नमीयुक्त गर्म वायु से उपचारित करने पर बीजजनित रोगों जैसे पेड़ी का बौना रोग (आर.एस.डी.), घासी प्ररोह रोग (जी.एस.डी.) तथा कंडुवा रोग का 99-100 प्रतिशत तक उन्मूलन हो जाता है। इस उपचार से लीफ स्केल्ड व लाल सड़न रोग का बीजजनित संक्रामण 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है।
- लाल सड़न, कंडुवा, घासी प्ररोह रोग तथा लीफ स्केल्ड रोगों से लक्षण पहली बार नजर आते ही संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए।
- बुवाई के समय गेडियों को बाविस्टीन, विटावैक्स, डाइथेन एम 45 इत्यादि कवकनाशियों से उपचार करने से गेड़ीयाँ सतहजनित रोगकारकों के सतही संक्रामण व सड़न से बच जाती है।
- बुवाई के पूर्व फार्मल्डीहाइड के प्रयोग, थीरम से बीजोपचार व बुवाई के पश्चात रिडोमिल, बाविस्टीन के प्रयोग तथा बुवाई के पूर्व ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से नर्सरी बेड में गन्ना बीज से लगाए गए पौध का रोग प्रबंधन किया जा सकता है।
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गन्ने का लाल सड़न |
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- गन्ने के 13 विभेदकों में संक्रामण क्षमता के आधार पर कालैटोट्राइकम फाल्केटम रोगाणुओं की पहचान के लिए एक विधि विकसित की गई तथा अब तक 11 रोगप्ररूपों को चिन्हित किया जा चुका है।
- गन्ने के जननद्रव्य तथा संततियों के मूल्यांकन के लिए आई.आई.एस.आर. नोडल तथा पैराफिल्म विधि जैसी उपचार करने की तकनीकें विकसित की गई हैं।
- सी. फाल्केटम के विरुद्ध ट्राइकोडर्मा हार्जियानम, टी. विरिडी तथा ग्लूकोनएसीटोबैक्टर डाइजोट्राफिक्स के शक्तिशाली विरोधी प्रभेदों की पहचान कर ली गई है। ट्राइकोडर्मा हार्जियानम के प्रक्षेत्र प्रयोग से लाल सड़न रोग के संक्रामण में 50 प्रतिशत तक का बचाव होता है।
- स्वस्थ गन्ना बीज तथा ट्राइकोडर्मा से समृद्ध प्रेसमड के प्रयोग द्वारा लाल सड़न रोग हेतु एक समेकित प्रबंधन विधि विकसित की गई है।
- लाल सड़न रोग के विरुद्ध प्रजातीय अवरोधिता के प्राय: टूटने का कारण, गन्ने की प्रजातियों में अवरोधिता वाले प्रभेदों के अतिरिक्त, नए प्रभेदों की उत्पत्ति पाया गया है।
- मानसून के पूर्व मई-जून में इस रोग का तंतु संक्रामण की तरह आना ही द्वितीयक संक्रामण का प्रमुख स्रोत होता है। अनुकूल मौसम पाने पर यह इस रोग को तेजी से फैला देता है।.
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स्मट |
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- गांठ तथा शीर्षस्थ कलियों में अव्यक्त संक्रमण का पता लगाने के लिए रोगन (Trypan blue staining) तकनीक विकसित की गई है ।
- एक एकीकृत प्रबंधन तकनीक जिसमे नम-ऊष्म वायु उपचार, कचरा जलाना, ठूंठ कटाई, प्रभावित पेड़ों के झुरमुट उखाड़ना आदि को विकसित किया गया ।.
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विल्ट |
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- एक्रिमोनियम इंप्लीकेटम और ए फरकेटम को गन्ने के विल्ट रोग के कारक एजेंट के रूप में चिन्हित किया गया है।
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आर.एस.डी |
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- प्रजातीय ह्रास में आर.एस.डी को प्रमुख रोग के रूप में चिन्हित किया गया।
- ऊष्मा उपचार का प्रयोग करके प्रबंधन अनुसूची विकसित एवं परिपूर्ण की गई
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मोजैक |
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- गन्ना चितेरी विषाणु (एस.सी.एम.वी.) के ए, बी तथा एफ जैसे तीन प्रभेद उपोष्ण भारत में उपस्थित हैं तथा प्रभेद बी सर्वाधिक व्यापी है।
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घासी प्ररोह बीमारी |
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- घासी प्ररोह रोग को लीफ हापर द्वारा संवहन करने वाले डेल्टोसीफैलस वल्गारिस को चिन्हित किया गया।
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कीट पतिंगो का प्रबंधन |
सामान्य |
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- गन्ने में बेधक कीट समूहों के लिए समेकित नाशीकीट प्रबंधन विधि विकसित की गई।
- विभिन्न राज्यों में पाइरिला, ऊनी माहू, स्केल कीट तथा बेधक कीट समूहों के वृहद स्तर पर जैव नियंत्रण हेतु विभिन्न पेराश्रयी तथा परजीवी बड़ी संख्या में निर्गत तथा संरक्षित किए गए।
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पायरिला |
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- पायरिला के जैव नियंत्रण हेतु एपेरिकेनीय मेलानोलेका के 4000-5000 कोकून प्रति हेक्टेयर की दर से संरक्षित एवं पुर्नवितरण करने की प्रक्षेत्र प्रौद्योगिकी विकसित की गई है।
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ऊनी माहू |
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- अगस्त से अक्टूबर के मध्य 15 दिनों के अंतराल पर, डिफा आफ़िडिवोरा के 1000 लार्वा / हैक्टेयर अथवा माइक्रोमस ईगोरोटस के 2000 लार्वा / हेक्टेयर को निर्मुक्त करना।
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प्ररोह तथा पोरी बेधक |
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- इन कीटों के जैव नियंत्रण हेतु जुलाई से अक्टूबर के मध्य, 10 दिनों के अंतराल पर, ट्राइकोग्रामा किलोनिस के 50,000 वयस्क/है. की दर से तथा जुलाई से नवम्बर के मध्य कोटेशिया फ्लेविपिस की 500 गर्भित मादाएं/है./ प्रति सप्ताह निर्मुक्त करें।
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शीर्ष बेधक और सफ़ेद कीड़ा |
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- शीर्ष बेधक को नियंत्रित करने हेतु फैरोमोन जाल (trap) 3 जी @ 33 कि.ग्रा./है. (कार्बोफ्यूरान 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/है.) या थीमैट 10 जी @ 30 कि.ग्रा./हे. (थीमैट 1 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व/है.) को जून माह के दूसरे से तीसरे सप्ताह के मध्य थान के चारो तरफ मृदा में प्रयोग करना चाहिए। मृदा से कीटनाशी रसायन के अवशोषण हेतु कीटनाशी रसायन के प्रयोग के पूर्व पर्याप्त नमी की उपलब्धता सुनिश्चित कर लेनी चाहिए
- सफेद लट (White grub) के वयस्क बीटल्स को पकड़ने के लिए प्रकाश-फैरोमोन प्रपंच विकसित किया गया।
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दीमक, अगेती प्ररोह बेधक और मूल बेधक |
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- दीमक, श्वेत भृंग, प्ररोह बेधक तथा जड़ बेधक के प्रकोप को रोकने हेतु बुवाई के समय नालियों में गन्ने की गेडियों के ऊपर क्लोरोपाइरीफांस 20 ई.सी. की 5 लीटर मात्रा/है. को 1600-1800 लीटर पानी में मिलाकर (3 मि.ली./ली. की दर से) छिड़काव करना।
- मार्च से मई के बीच अभियान के रूप में सामयिक अंतराल पर कीटग्रस्त गन्नों को एकत्रित करके नष्ट करना।
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चूहे |
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- गन्ना आधारित फसल प्रणाली हेतु समेकित चूहा प्रबंधन कार्यक्रम विकसित किया गया।
- चूहों के मौसमी व्यवहार का अध्ययन किया गया तथा चूहों के नियंत्रण हेतु उनके आहार में जिंक फास्फाइड (2 प्रतिशत) अथवा ब्रोमाडियोलोन के मिश्रण को बड़े क्षेत्र में प्रमाणित किया गया।
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चुकंदर की खेती हेतु सस्य-क्रियाएँ |
- उपोष्ण तथा उष्ण दशाओं में चुकंदर की खेती हेतु सस्य, कीट व रोग नियंत्रण की सभी क्रियाओं को समाहित करके एक सम्पूर्ण पैकेज विकसित किया गया है।
- चुकंदर की लोकप्रिय प्रजातियों जैसे आई.आई.एस.आर. कांपोजिट 1 तथा एल.एस. 6 विकसित की गईं।
- चुकंदर बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास एवं मानकीकरण किया गया।
- पौध अवस्था में लगने वाले रोगों के प्रबंधन हेतु चुकंदर के बीजों की कवकनाशी+बैन्टोनाइट क्ले द्वारा पैलेटिंग का मानकीकरण किया गया है।
- आरम्भिक अवस्थाओं में ट्राइकोडर्मा हार्जियानम तथा उच्च तापमान वाली बाद की अवस्थाओं हेतु कवकनाशियों के प्रयोग से चुकंदर के स्कलेरोशियम जड़ गलन रोग पर नियंत्रण पाने की तकनीक विकसित की गई है।
- चुकंदर की बुवाई हेतु कृषि-यंत्रों को भी अभिकल्पित किया गया है।
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गन्ना कृषि का मशीनीकरण |
रिजर टाइप सुगारकेन कटर-प्लांटर |
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ट्रैक्टर चालित रिजर टाइप सुगरकेन कटर-प्लांटर 75/90 से.मी. की दूरी पर गन्ने की बुवाई में समाहित सभी प्रमुख कार्यों का सफलतापूर्वक निष्पादन करता है तथा इस यंत्र द्वारा एक हैक्टयर क्षेत्र की बुवाई 4-5 घंटे में हो जाती है तथा यह यंत्र बुवाई क्रियाओं में लगने वाली लागत में 60 प्रतिशत की बचत करता है। |
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तीन पंक्ति बहुउद्देशीय गन्ना कटर-प्लांटर |
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खेत पर चलने वाले पहियों (ग्राउन्ड व्हील) से संचालित तीन-पंक्ति बहुउद्देशीय गन्ना कटर-प्लांटर 75 से.मी. की दूरी पर गन्ने की बुवाई हेतु सभी कार्यों का सुगमतापूर्वक निष्पादन करने में कारगर है। एक हैक्टेयर क्षेत्र में इस यंत्र द्वारा प्रभावी बुवाई क्षमता 3.5 से 4.0 घंटे है तथा इस यंत्र के प्रयोग से बुवाई पर मानव श्रम में लगने वाली 70 प्रतिशत लागत की बचत की जा सकती है। |
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युगलपंक्ति गन्ना कटर-प्लांटर |
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ट्रैक्टर शक्ति द्वारा संचालित युगलपंक्ति गन्ना कटर-प्लांटर को युगलपंक्ति ज्यामितीय (30 से.मी. दूरी) के अन्तर्गत गन्ने की बुवाई हेतु विकसित किया गया है। इस युगलपंक्ति के बाद की दूरी में भिन्नता भी रखी जा सकती है। एक हैक्टेयर क्षेत्र में बुवाई हेतु इस यंत्र की प्रभावी क्षमता 4-5 घंटे है तथा इससे बुवाई करके बुवाई कार्यों में लगने वाली लागत में लगभग 60 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है। |
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शून्य-कर्षण गन्ना कटाई-रोपाई यंत्र |
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(पीटीओ) संचालित ‘शून्य-कर्षण गन्ना-कटाई-रोपाई यंत्र’ जो गन्ने की रोपण के लिए सभी क्रियाओ के साथ 75/90 सेमी अंतराल पर गन्ना बुवाई हेतु विकसित किया गया। बाद में जोड़ी पंक्तियों के बीच की दूरी को कम व ज्यादा किया जा सकता है। यह 4-5 घंटे में एक हेक्टेयर के रोपण की प्रभावी क्षमता रखता है और लगभग रोपण लागत 60% बचाता भी है। यह बीज शैया निर्माण की लागत को भी बचाता है। |
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दो-पंक्तियों में गड्ढाखुदाई यंत्र |
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यह यंत्र 25-30 सेमी गहरे, 70 सेमी व्यास वाले 30 सेमी अंतराल पर वृत्ताकार गड्ढे वलय गड्ढा पद्धति में गन्ना बोने हेतु विकसित किया गया। यह 150 गड्ढ़े / घंटा (0.017 हेक्टर/घंटा) की खुदाई की दर से प्रभावी क्षमता रखता है और 400 मानव दिवस/हैक्टर बचाता है। मानव खुदाई की तुलना में यह 70% गड्ढा खुदाई लागत बचाता है। |
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रेज्ड बेड सीडर |
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17 से.मी. पर गेहूँ की बुवाई हेतु तीन उठी हुई बीज शैय्याओं (2 पूर्ण शैय्याओं व 2 आधी शैय्याओं) तथा अवश्यकतानुसार गन्ने की बुवाई हेतु 75 से.मी. की दूरी पर तीन कूँड़ो के बनाने हेतु रेज्ड बेड सीडर का विकास किया गया है। इसकी प्रभावी क्षमता 0.35-0.40 हेक्टेयर/घण्टा है। |
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रेज्ड बेड सीडर-कम-शुगरकेन कटर प्लांटर |
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इस यंत्र का विकास नालियों में गन्ने की दो पंक्तियों को बोने तथा गेहूँ की दो पंक्तियों को उठी हुई क्यारियों पर अंतरसस्य फसल के रूप में बुवाई हेतु विकसित किया गया है। इसकी प्रभावी क्षमता 0.20-0.25 हेक्टेयर/घण्टा है तथा इसके प्रयोग से लगभग 60 प्रतिशत बुवाई लागत की बचत की जा सकती है |
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पेड़ी प्रबंधन यंत्र |
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पेड़ी प्रबंधन यंत्र (आर.एम.डी.) पेड़ी फसल के प्रबंधन में किए जाने वाले सभी कार्यों जैसे ठूँठों की छटाई, उसके आस-पास की निराई-गुड़ाई, पुरानी जड़ें काटने, खाद, उर्वरक व जैवकारकों तथा द्रवीय रसायनों का प्रयोग तथा मिट्टी चढ़ाने इत्यादि को एक बार में ही निष्पादित कर देता है। इस यंत्र की क्षमता 0.35-0.40 हेक्टेयर/घण्टा है तथा इस यंत्र के प्रयोग से लागत के खर्चो को 60 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है। |
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